एससी-एसटी ऐक्ट में सात साल की सजा तो सीधे गिरफ्तारी नहीं: हाईकोर्ट

लखनऊ। एससी-एसटी ऐक्ट पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के हवाले से आरोपियों की सीधे गिरफ्तारी पर नाराजगी जताई है। इलाहाबाद हाई कोर्ट का कहना है कि इस ऐक्ट के अन्य कानून जिनमें सजा सात साल या कम है, के तहत आरोपियों की सीधे गिरफ्तारी तभी संभव है जब यह आवश्यक हो।कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे मामलों में पहले आरोपी को नोटिस देकर पूछताछ के लिए बुलाया जाए। यदि वह नोटिस की शर्तों का पालन करता है तो उसे विवेचना के दौरान गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। जस्टिस अजय लांबा व जस्टिस संजय हरकौली की बेंच ने ये बातें एससी-एसटी ऐक्ट में केंद्र सरकार के अध्यादेश के बाद 19 अगस्त को दर्ज एक प्राथमिकी रद करने की मांग वाली याचिका की सुनवाई के दौरान कही। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में गिरफ्तारी से पहले अरनेश कुमार बनाम बिहार राज्य के केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का पालन किया जाए। इसी के साथा कोर्ट ने याचिका निस्तारित कर दी।अनरेश कुमार केस में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि यदि किसी के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी में अपराध की अधिकतम सजा सात साल तक की है, तो ऐसे मामले में सीआरपीसी 41 व 41-ए के प्रावधानों का पालन किया जाएगा। विवेचक को पहले सुनिश्चित करना होगा कि गिरफ्तारी अपरिहार्य है, अन्यथा न्यायिक मैजिस्ट्रेट गिरफ्तार व्यक्ति की न्यायिक रिमांड नहीं लेगा। गिरफ्तारी पर रोक की मांग कर रहे हैं याची राजेश मिश्रा ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर अपने खिलाफ लिखाई गई प्राथमिकी को चुनौती दी थी। साथ ही मांग की थी कि पुलिस को निर्देश दिया जाए कि विवेचना के दौरान उसे गिरफ्तार न किया जाए। सुनवाई के दौरान अपर शासकीय अधिवक्ता प्रथम नंद प्रभा शुक्ला ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि सजा सात साल से कम है इसलिए विवेचक सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन करेंगे। दरअसल, हाई कोर्ट में इन दिनों ऐसे मुकदमों की बाढ़ सी आई है, जिनमें आरोपी सात साल से कम सजा वाली धाराओं में गिरफ्तारी पर रोक की मांग कर रहे हैं।

Related posts